प्रसिद्ध उद्यमी व्यक्ती की कहानी:
एक बार दुनिया के एक बेहद सफल स्टार्ट-अप के संस्थापक "उद्यमी" ने एक प्रसिद्ध व्यापार सम्मेलन में अपना विचार रखा ।
उपस्थित दर्शकों ने इस बुद्धिमान "उद्यमी" की ख़ूब सराहना करते हुए भाषण को ध्यान से सुना और ख़ूब तालियाँ बजाई ।
भाषण के बाद मंच के पीछे, "उद्यमी" ने एक बड़ी रीटेल चैन के मुख्य "अधिकारी" से मुलाकात की। उद्यमी ने उस अधिकारी से पूछा कि उन्हें उनका भाषण कैसा लगा।
उस "अधिकारी" ने बहुत ठंडेपन से जवाब दिया, " बक़वास... ।
उस "उद्यमी" की जगह शायद कोई और होता तो नाराज़,परेशान या निराश हो सकता था लेकिन उन्होंने बिलकुल मौन रहना ही उचित समझा।
उस "अधिकारी" को कुछ दिनों में, उस बड़े "उद्यमी" के संस्था द्वारा एक शहर का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
जानते हैं क्यों... क्योंकि एक सफल शख्शियत होने के नाते काम करते हुए, "उद्यमी" को अपने आस पास आंखों में आंखें डालकर सच बोलने वाले लोगों की ज़रूरत थी, जो बिलकुल खुले मन से किसी की भी ग़लतियों की आलोचना और अच्छाइयों की प्रशंसा कर सकें । इस आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, उस "उद्यमी" ने अपनी कंपनी में उस स्पेशल "अधिकारी" को नियुक्त करने की इच्छा दिखाई औऱ इस प्रकार अपनी भावनाओं को सबके सामने ज़ाहिर किया।
लेकिन विडंबना ये है जैसे जैसे कोई आदमी बड़ा औऱ सफ़ल होते जाता है, वैसे वैसे उसके चारों ओर कई "यस-मैन" औऱ जिहजुरी करने वाले चमचे टाइप लोग लगे रहते हैं, जिसके कारण कई बार उस आदमी को अपनी गलती का एहसास तक नहीं होता ।
अगर वास्तव में अपने जीवन में आगे बढ़ना है तो ऐसे शौक काम नहीं करते जिसमे चमचे टाइप लोग सिर्फ और सिर्फ बॉस की झूठी प्रशंसा करे। शायद "उद्यमी" ने 'निंदक नियरे राखिए' वाली कहावत सुनी होगी इसलिए उसने सच बोलने वाले उस "अधिकारी" को अपनी कंपनी में बड़े ओहदे पर नियुक्त किया....!!
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